विशेष-बटाला में पहली पातशाही श्री गुरू नानक देव जी के विवाह पर्व मनाने की परंपरा आज भी जारी
⇒बटाला में 13 सितंबर को श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी की छत्रछाया में निकाला जायेगा विशाल भव्य नगर कीर्तन
⇒सैंकडों श्रद्धालु वर्षोंं पुरानी ऐतिहासिक दीवार जो गुरूद्वारा कंध साहिब में स्थापित हैं, के करेंगे दर्शन
न्यूज4पंजाब डेस्क की विशेष रिपोर्ट
बटाला,12 सितंबर- बटाला में कई वर्षों से पहली पातशाही श्री गुरू नानक देव जी और बीबी सुलक्खनी जी के विवाह पर्व मनाने की यह पंरपरा चलती आ रही है। आज भी दुनिया में यह बेमिसाल पंरपरा है। सिख जगत में इस पर्व का विशेष महत्व है। आज यानि 13 सितंबर को बटाला मेंं बाबा नानक का 534 वां विवाह पर्व पूरी श्रद्धा से मनाया जा रहा है । सोमवार को बटाला में श्री गुरू ग्रंथ साहिब की छात्रछाया मेंं गुरूद्वारा डेहरा साहिब बटाला से एक विशाल नगर कीर्तन निकाला जा रहा है जो पूरे शहर के बाजारों से होते हुए सोमवार की देर शाम को गुरूद्वारा डेहरा साहिब में ही समाप्त हो जाएगा। ऐतिहासिक पक्ष के अनुसार बटाला के रहने वाले क्षत्रिय मूल चंद पटवारी की बेटी बीबी सुलक्खनी जी से सगाई श्री गुरू नानक देव जी से हुई थी। इसी के चलते श्री गुरू नानक देव जी पूरी बारात के साथ सुल्तानपुर लोधी से बटाला शादी के लिए आए थे। इस विवाह पर्व को देखने के लिए सिख संगत देश विदेशों से भी बटाला पहुंचती है। इस विश्व स्तरीय पर्व पर बटाला स्थित गुरूद्वारा कंध साहिब में शीशे के फ्रेम में सुरक्षित ऐतिहासिक कच्ची दीवार कच्ची कंध के दर्शनों के लिए संगत ललाहित रहती है।
युगो-युग अटल गुरूद्वारा कंध साहिब मेंं स्थापित कच्ची कंध की ऐतिहासिक महत्ता
एतिहासिक पक्ष से गुरूद्वारा कंध साहिब के बारे में यह प्रचलित है कि जब बाबा की बारात बटाला पहुंची तो उस समय थोड़ी थोड़ी बारिश हो रही थी । जिस जगह पर बाबा नानक की बारात को ठहराया गया था वहां एक कच्ची दीवार थी । जिसके नजदीक बाबा नानक को बैठना था। जब गुरू साहिब दीवार के पास बैठे तो एक बजुर्ग महिला ने गुरू साहिब को कहा कि यह (दीवार) कंध कच्ची है और गिरने वाली है । वह वंहां से उठ जाएं । तो गुरू साहिब ने कहा कि माता यह दीवार तो युगों युगों तक कायम रहेगी। वह कच्ची दीवार (कंध) आज भी गुरूद्वारा कंध साहिब में शीशे के फ्रेम में सुरक्षित है और आज भी देश विदेशों से पहुंचे श्रद्धालु कच्ची कंध के सामने नत्मस्तक होते हैं। इसके बाद में महाराजा नौंनिहाल सिंह ने वहां गुरूद्वारा साहिब बनाया जहां वह कंध थी। जिसका नाम गुरूद्वारा कंध साहिब रखा गया। आज कल इस गुरूद्वारें का प्रंबंध शिरोमणि गुरूद्वारा प्रंबंधक कमेटी के पास है।
आज भी सुल्तानपुर लोधी से बटाला पहुंचने पर बारात का स्वागत होता है।
ऐतिहास के अनुसार श्री गुरू नानक देव जी बारातियों सहित ,पारिवारिक सदस्यों को लेकर सुल्तानपुर लोधी से सजधज कर कपूरथला ,सुभानपुर ,बाबा बकाला से होते हुए ऐतिहासिक शहर बटाला में बारात के रूप में पहुंचे थे। गुरू जी की बारात के बटाला में पहुंचने पर बटाला शहर के वरिष्ट लोगोंं तथा रिश्तेदारों ने बारात का भव्य स्वागत किया था। जिस जगह पर गुरू जी की शादी के फेरों की रस्म हुई थी ,वह आजकल गुरूद्वारा डेहरा साहिब के नाम से प्रचलित है। गुरूद्वारा कंध साहिब और गुरूद्वारा डेहरा साहिब पास-पास हैं। आज भी श्री गुरू ग्रंथ साहिब के स्वरूप मेंं सुल्तानपुर लोधी से चली बारात का बटाला पहुंचने पर शहर के वरिष्ठ लोग और विभिन्न संगठन स्वागत करते हैं।
क्या है इस पर्व के आकर्षन
बटाला के इस एतिहासिक पर्व में श्रद्धालूओं का तांता कई दिन पहले ही लगना शुरू हो जाता है । पंजाब व पंजाब से बाहर से भी लोग इस समारोह में शामिल होते हैं। इस दिन श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी को पालकी साहिब में सुशोभित कर विशाल नगर कीर्तन का आयोजन किया जाता है। जिसमें लाखों की तादाद में संगत शामिल होती है। जगह जगह पर गुरू का अटूट लंगर लगाए जातें है। विशेष तौर पर बाहर से आए लोगों के लिए ठहरने और खाने का पुखता प्रंबंध होता है। जिन लोगों ने शादी की मन्नत मानी होती है और जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है,वह गुरू ग्रंथ साहिब के समक्ष सेहरा भेंट करते है और प्रभु का शुक्रिया करते हैं। पर्व की रात को शहर मेंं जगह जगह दीवान सजाए जाते हैं जिसमें गुरू साहिब जी की बाणी का बखान किया जाता है। बच्चों के लिए खिलौने और झूले आकर्षन का केंद्र होते है। शहर के अलावा सभी गुरूद्वारों को भी दुल्हन की तरह सजाया जाता है।