विशेष…पहली पातशाही बाबा नानक जी के विवाह पर्व की परंपरागित रस्में शुरू ,महिला संगत ने क्विंटलों के हिसाब से निकाले गुणें ।

-भारी संख्या में पहुंची संगत को गुणें (गुलगले) बांटे

न्यूज4पंजाब ब्यूरो

बटाला। पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी के विवाह पर्व से संबंधित संगत द्वारा पारंपरिक रस्म- रिवाज शुरू कर दिए गए हैं। परंपरागित तौर पर जैसे विवाह से कुछ दिन पहले घरों में गुणें (गुलगले) निकाले जाते हैं बिलकुल वैसे ही शुक्रवार को बटाला के विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री कंध साहिब में महिला संगत ने विवाह के रस्मों रिवाज को निभाने के लिए क्विंटलों के हिसाब से विवाह की खुशी में गुणें तैयार करके भारी संख्या में संगत को बांटे। इन गुणों का लंगर तैयार करने से पहले भाई गुरविंदर सिंह हैडग्रंथी गुरूद्वारा कंध साहिब ने अरदास बेनती की।

बटाला के गुरूद्वारा कंध साहिब में विवाह पर्व की खुशी में महिला संगत द्वारा तैयार किए जा रहे गुणें।

विवाह पर्व के मुख्य प्रबंधक जत्थेदार गुरिंदरपाल सिंह गोरा (कार्यकारी सदस्य शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी) ने समूह महिला संगत को इस अवसर पर बधाई देते हुए कहा कि वह सभी बहुत भाग्यवान है जिन्होंने गुरू के इस अटूट लंगर गुणें बनाने की सेवा की है। उन्होने बताया कि संगत परिवारों समेत गुरूद्वारा कंध साहिब में नत्तमस्तक हो रही हैं। रोजाना सत्संग सभा की महिला संगत द्वारा विवाह को समर्पित गुरबाणी का मनोहर कीर्तन किया जाता है। इस मौके पर जत्थेदार गोरा ने  गुरूद्वारा कंध साहिब के मैनेजर निशान सिंह पंधेर,गुरूद्वारा अचल साहिब के मैनेजर गुरतिंदरपाल सिंह भाटिया,मैनेजर गुरूद्वारा डेहरा साहिब मनजीत सिंह जफरवाल और भाई गुरविंदर सिंह को सिरोपा देकर सम्मनित किया। यह बताना भी अनियार्व है कि तीन सितंबर को बटाला में विश्व प्रसिद्ध पहली पातशाही श्री गुरू नानक देव  का 535 वां विवाह पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जा रहा है,जिसमे संगत पंजाब से ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों से इस पर्व को देखने आती हैं। यह धार्मिक पर्व का बाबा दा ब्याह के नाम से भी मशहूर है।

बाक्स- बतां दे कि गुरुद्वारा श्री कंध साहिब वह स्थान जहां कई सैंकडों साल पहले जब पहली पातशाही श्री गुरू नानक देव जी बटाला में विवाह के लिए आए थे तो उनकी बारात वहां पर ठहरी थी और खुद बाबा नानक जी उस कच्ची कंध के पास बैठे थे जो आज भी बाबा नानक के वहां पर बैठने की साक्षी है। उसी कच्ची कंध के नाम पर ही गुरूद्वारा श्री कंध साहिब का निर्माण हुआ था। आज भी गुरूद्वारा कंध साहिब में शीशे के फ्रेम में वहीं कच्ची कंध को  सुरक्षित रखा गया  है। जिसके दर्शन श्रद्धालु देश-विदेश से बटाला पहुंचकर करते हैं।

 

 

 

 

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