अचलेश्वर धाम में दो दिवसीय नवमीं-दसवीं के महाकुंभ मेले में हजारों श्रद्धालु हुए नतमस्तक
⇒श्रद्धालुओं ने मंदिर परिसर के पवित्र सरोवर में स्नान कर सभी देवी-देवताओं का आशीष प्रात्त किया
विक्की कुमार
बटाला,12 नवंबर- श्री कार्तिकेय स्वामी जी महाराज के बटाला स्थित एक मात्र मंदिर श्री अचलेश्वर धाम में दो दिवसीय नवमीं-दसवीं के महाकुंभ मेले के पहले दिन शुक्रवार को हजारों श्रद्धालु नतमस्तक हुए। इस मौके पर भक्तों ने पहुंच कर मंदिर में श्री कार्तिकेय स्वामी जी और भगवान भोले नाथ जी की पूजा की। इसके अलावा मंदिर परिसर में बने पवित्र सरोवर में स्नान कर सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया। शुक्रवार को पहले दिन स्नान के लिए और भगवान कार्तिकेय के दर्शनों के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु और साधू-संत मंदिर पहुंचे। शुक्रवार सुबह मंदिर में माथा टेकने के लिए श्रद्धालुओ की लंबी कतारे देखने को मिली।
शुक्रवार सुबह (देर रात) ही श्रद्धालु पवित्र सरोवर के किनारे पहुंचने शुरू हाे गए। श्रद्धालु स्नान के बाद भगवान कार्तिकेय मंदिर में माथा टेकने के लिए उमड़ पड़े। सरोवर की परिक्रमा में हजारों की संख्या में भी साधु देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे हैं। इस संबंध में मंदिर के मुख्य सेवादार पवन कुमार पम्मा ने बताया कि मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए लंगर और ठहरने का प्रबंध किया गया है। मंदिर के आस-पास श्रद्धालुओं के खाने के लिए इलाके के विभिन्न संगठनों की तरफ से 20 से ज्यादा लंगर लगाए गए हैं। जिनमें श्रद्धालुओं के लिए खाने-पीने पानी का विशेष प्रबंध किए गए हैं।
इसके अलावा मेले में लाेगाें ने झूलाें का आन्नंद लिया। मंदिर परिसर में साधु-संत धूना लगाकर बैठे भी नजर आए।
वहीं मंदिर के सामने ही स्थापित गुरुद्वारा श्री अचल साहिब में भी संगत ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष माथा टेका और बाबा नानक के समय की बेरी के पेड़ की परिक्रमा की। गुरुद्वारा साहिब द्वारा भी संगत के लिए अटूट लंगर लगाया गया।
जानिए क्या है ऐतिहास अचलेश्वर धाम के नवमीं-दसवीं के महाकुंभ दो दिवसीय मेले का-
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर माता पार्वती के संग विराजमान थे। भोलेनाथ के मन में विचार आया कि अब उन्हें अपनी गद्दी दोनों पुत्रों श्री गणेश और श्री कार्तिक स्वामी में से किसी एक को सौंप देनी चाहिए। वह उनके बुद्धि कौशल की परीक्षा लेना चाहते थे। भगवान भोलेनाथ ने अपने दोनों पुत्रों से कहा कि उनमें से जो पहले ब्रह्मांड की परिक्रमा करके कैलाश पर पहुंचेगा, वह उनका उत्तराधिकारी होगा। यह सुनकर कार्तिक अपने वाहन मोर पर सवार होकर परिक्रमा के लिए उड़ गए। दूसरी तरफ गणेश भी अपने वाहन चूहे पर निकल गए। गणेश जी को रास्ते में नारद जी मिले और बताया कि समस्त लोक तो माता-पिता के चरणों में है। ऐसा सुनते ही श्री गणेश जी ने वापस कैलाश पर आकर अपने माता-पिता की चारों ओर परिक्रमा कर प्रणाम किया। भगवान शिव ने अपना उत्तराधिकारी श्री गणेश को बना दिया। आकाश में उड़ रहे स्वामी कार्तिक जी को जब पता चला तो वह रूठ गए और वह उस समय बटाला के उस क्षेत्र में थे, जिसे आज अचलेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर वह उतर गए। यह जानकर भगवान शंकर 33 करोड़ देवी-देवताओं सहित आए और उन्हें मनाना चाहा, लेकिन कार्तिक नहीं माने और कहा कि अब वह कहीं नहीं जाएंगे, यहीं पर अचल हाेंगे। तब भगवान शंकर जी ने उन्हें अचलेश्वर महादेव की उपाधि देकर उनका यहां निवास स्वीकार कर लिया और वरदान दिया कि इसी जगह पर हर साल कार्तिकेय माह की नवमीं-दसवीं काे 33 कराेड़ देवी-देवता इस स्थान पर आंएगे और मंदिर परिसर में बने सराेवर में स्नान करने वालाें की मन्नत पूरी हाेगी। इसलिए यह स्थान हिंदू धर्म में महापूज्य है। इसी जगह पर हर साल कार्तिक माह की नवमीं-दसवीं को यह मेला लगता है।